आजकल आर्टिफ़िशियल स्वीटनर का इस्तेमाल काफ़ी चलन में है. इसे आर्टिफ़िशयल स्वीटनर, लो कैलोरी स्वीटनर, इंटेंस स्वीटनर जैसे कई नामों से जाना जाता है, आर्टिफ़िशियल स्वीटनर आपकी रोज़ाना खाई जाने वाली चीनी या सुक्रोज़ के मुक़ाबले लगभग 300 से 13000 गुना ज़्यादा मीठे होते हैं. इसी वजह से ये चीनी के विकल्प के तौर पर मशहूर हुए हैं. माना जाता है कि इनके इस्तेमाल से भूख पर नियंत्रण भी होता है. इसलिए वज़न में कमी, डायबिटीज़ पर क़ाबू या मेटाबॉलिज़्म से जुड़ी परेशानियों से बचाव करने वाले इसका इस्तेमाल करना पसंद करते हैं.
एफडीए (FDA) ने भी कुछ किस्म के आर्टिफ़िशयल स्वीटनर को इंसानों के लिए ‘आमतौर पर सुरक्षित’ बताकर, मंजूरी दे दी है. हालांकि सीमित मात्रा में ही इनका इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है. जिससे कोई नुकसान न पहुंचे. हर एक व्यक्ति की ऊर्जा और कैलोरी की ज़रूरत अलग होती है जो की व्यक्ति के उम्र, लिंग, पोषक तत्वों और शारीरिक सक्रियता वग़ैरह पर निर्भर होती है. इसका मतलब है कि अगर आप आर्टिफ़िशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसकी मात्रा भी इन्हीं पहलुओं को ध्यान में रखकर तय करें. इसे लेने किए कोई भी एक आदर्श या सामान्य ख़ुराक तय नहीं है, जो कि सभी के लिए सही हो.
कितने सुरक्षित हैं आर्टिफ़िशियल स्वीटनर
आर्टिफ़िशियल स्वीटनर सिर्फ़ चीनी का विकल्प ही नहीं हैं, बल्कि उससे बढ़कर काम कर रहे हैं. इन दिनों चीनी के मुक़ाबले ज़्यादा पौष्टिक बताकर इसका प्रचार किया जा रहा है. लेकिन क्या सच में शुगर की जगह आर्टिफ़िशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करना सेहत के लिए फ़ायदेमंद है? कृत्रिम मिठास का ज़्यादा इस्तेमाल करने से डायबिटिक लोगों का ब्लड ग्लूकोज़ लेवल बढ़ सकता है. कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि आर्टिफ़िशियल स्वीटनर का ज़्यादा सेवन करने से ब्लैडर कैंसर, ह्रदय और किडनी से जुड़ी लंबे समय की होने वाली परेशानियों का ख़तरा बना रहता है.
क्या कहते हैं शोध?
पोषण से जुड़े दिशा निर्देशों के मुताबिक, रोज़ाना की डाइट में थोड़ी मात्रा में आर्टिफ़िशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करना ठीक है. लेकिन पोषक तत्वों से भरपूर आहार जैसे कि दूध और फलों की जगह, बिना पोषक तत्वों वाली मिठास भरी चीज़ों के साथ स्वीटनर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. हालांकि आर्टिफ़िशियल स्वीटनर के इस्तेमाल से आप कैलोरी इनटेक यानी कैलोरी की खपत पर क़ाबू पा सकते हैं. जिसके चलते वज़न और ब्लड ग्लूकोज पर नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है, जिससे ये साबित हो कि इनके इस्तेमाल से वज़न कम करने या डायबिटीज़ पर क़ाबू पाने में मदद मिलती है.
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प्राकृतिक मिठास वाले खाद्य पदार्थों से तुलना
चीनी का विकल्प सिंथेटिक या क़ुदरती मीठी चीज़ें, दोनों ही हो सकती हैं. पौधों, फलों, शहद या दूसरे कई प्राकृतिक स्रोतों से क़ुदरती मिठास पाई जा सकती है. ये बहुत पहले से इंसानों के खानपान का हिस्सा रहे हैं. यहां तक कि बीसवीं शताब्दी के शुरूआती दौर में चीनी या सुक्रोज के मशहूर होने से पहले, मिठास के तौर क़ुदरती स्रोतों में यही चीज़ें एकमात्र विकल्प थीं. प्राकृतिक मिठास वाले खाद्य पदार्थों का ग्लाईसेमिक इंडेक्स कम होने की वजह से इनसे ब्लड ग्लूकोज भी नहीं बढ़ता. सामान्य चीनी की तुलना में प्राकृतिक मिठास वाली चीज़ों को शरीर धीरे-धीरे अवशोषित करता है. इसीलिए प्राकृतिक मिठास वाली चीज़ें जैसे कि शहद, फलों के गूदे, ख़जूर वग़ैरह को डायबिटीज़ से प्रभावित लोगों के लिए ज़्यादा फायदेमंद माना जाता है.
कृत्रिम मिठास वाले विकल्पों में सबसे ज़्यादा मशहूर है स्टीविया. इसकी मिठास को एकदम ‘सही’ माना गया है. इसमें कैलोरी बिलकुल भी नहीं होती. ऐसा माना जाता है कि स्टीविया ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को नियंत्रण में रखता है. इसी वजह से डायबिटीज़ प्रभावित लोग इसे काफ़ी पसंद करते हैं.
लाइफ़स्टाइल में बदलाव की कोशिश करने के दौरान लोगों का झुकाव सिंथेटिक विकल्प की ओर ज़्यादा होता है. इसकी वजह है कैलोरी का सेवन किए बग़ैर, मनचाहे स्वाद का मिलना. लेकिन प्राकृतिक और कृत्रिम मिठास में कौन ज़्यादा बेहतर है, यह अभी भी बहस का विषय बना हुआ है. ऐसे में यह जानना बेहद ज़रूरी है कि आप अपने शरीर को क्या दे रहे हैं.
आइये कुछ ख़ास सिंथेटिक आर्टिफ़िशियल स्वीटनर पर एक नज़र डालते हैं.
एस्पार्टेम
एस्पार्टेम की खोज 1965 में हुई थी. यह सामान्य शुगर के मुक़ाबले 200 गुना ज़्यादा मीठा होता है. एस्पार्टेम की ख़ासियत यही है की इसके एमिनो एसिड, ऐसपर्टिक एसिड, फेनिलालेनाइन और एथानॉल जैसे घटक सुक्ष्म मात्रा में मेटाबोलाइज हो जाते हैं. इसके कंपाउंड्स मीट, दूध, फल और सब्जियों जैसी दूसरी खाने की चीज़ों में भी पाए जाते हैं.
- रोज़ाना की तय ख़ुराक: शरीर के प्रति किलो वज़न पर 50 मिग्रा स्वीटनर
- संभावित नुक़सान: थकान, ब्रेन ट्यूमर, एलर्जी
- भारत में उपलब्ध ब्रांड: इक्वल, शुगर-फ़्री गोल्ड (Equal, Sugar-Free Gold)
सैकरीन
मिठास के तौर पर कैलोरी रहित सैकरीन का इस्तेमाल लंबे वक़्त से किया जा रहा है. यह पहला आर्टिफ़िशयल स्वीटनर है, जिसे 1879 में सिंथेटिक के तौर पर विकसित किया गया था. चीनी के मुक़ाबले ये 300 गुना ज़्यादा मीठा होता है. पशुओं पर किए एक अध्ययन में पाया गया कि सैकरीन से कैंसर भी हो सकता है. हालांकि इसे इंसानों के लिए ख़तरनाक नहीं माना गया, क्योंकि यह नॉन डीएनए रिएक्टिव मैकेनिज़म के तहत कैंसर फैलाता है.
- रोजाना की निर्धारित ख़ुराक: 5 मिलीग्राम शरीर का प्रति किलो वज़न/रोज़ाना
- संभावित नुकसान: ब्लैडर कैंसर, ग्लूकोज़ इनटॉलरेंस
- भारत में उपलब्ध ब्रांड: स्वीट एंड लो, शुगर-फ़्री (Sweet & Low, Sugar-Free)
सुक्रालोज़
सुक्रालोज़ चीनी की तुलना में 600 गुना ज़्यादा मीठी होती है. इसमें ऐसे गुण होते हैं. जो इसे गर्मी में भी स्थिर बनाये रखते हैं. इसी गुण की वजह से इसे बेकरी उत्पादों में ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. सुक्रालोज़ का इस्तेमाल आइसक्रीम, डेयरी, ठंडे पेय पदार्थ और मिठाइयों में ज़्यादा किया जाता है.
- रोज़ाना की निर्धारित ख़ुराक: शरीर के प्रति किलो वज़न पर 5 मिग्रा स्वीटनर
- संभावित नुकसान: इंसुलिन संवेदनशीलता पर प्रभाव पड़ सकता है.
- भारत में उपलब्ध ब्रांड: स्प्लेंडा, शुगर-फ़्री नेचुरल, एलाटा, ज़ीरो
ऐसेसल्फेम के (पोटैशियम) :
‘ऐसेसल्फेम के’ की घुलनशीलता काफ़ी अच्छी होती है. यह चीनी की तुलना में 200 गुना ज़्यादा मीठा होता है. ख़ासकर इसका इस्तेमाल बिना अल्कोहल वाले पेय पदार्थों को बनाने में किया जाता है.
- रोज़ाना की निर्धारित ख़ुराक: शरीर के प्रति किलो वज़न पर 15 मिग्रा स्वीटनर
- संभावित नुकसान: कैंसरकारी
- भारत में उपलब्ध ब्रांड: सनसेट, स्वीट वन (Sunett, Sweet One)
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नियोटेम
नियोटेम चीनी की तुलना में 8000 गुना ज़्यादा मीठा होता है. यह रासायनिक तौर पर एस्पार्टेम से जुड़ा हुआ है. दूसरे आर्टिफ़िशयल स्वीटनर की तुलना में इसका इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है.
- रोज़ाना की निर्धारित ख़ुराक: शरीर के प्रति किलो वज़न पर 18 मिग्रा स्वीटनर
- संभावित नुकसान: न्यूरोटॉक्सिसिटी
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