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डिसलिपिडिमिया क्या है?

डिसलिपिडिमिया मेडिकल टर्म में उस स्थिति को कहते हैं, जब LDL, HDL, ट्राईग्लिसराइड या इन सभी के लिपिड लेवल के कॉम्बिनेशन में ख़ामी होती है. डिसलिपिडिमिया का सबसे आम प्रकार है हाइपरलिपिडिमिया या हाई लिपिड लेवल. इसके होने पर LDL या ट्राईग्लिसराइड का लेवल ज़्यादा और HDL का लेवल कम होता है. नतीजन हार्ट अटैक का ख़तरा दोगुना हो जाता है. डिसलिपिडिमिया का दूसरा प्रकार है हाइपोलिपिडिमिया. यह लिपिड लेवल की उस स्थिति को कहते हैं, जब यह ज़रूरत से कम होता है, जैसे कि – हाई ब्लड प्रेशर. हो सकता है आप इसके शिकार हों, पर आपको इसकी जानकारी तब तक नहीं हो जब तक आप लिपिड प्रोफ़ाइल की जांच न करवाएं.

लिपिड का स्तर इस तरह होने चाहिए

  • कुल कोलेस्ट्रॉल : 200 mg/dL से कम
  • HDL कोलेस्ट्रॉल: पुरुषों का 40 mg/dL से ज़्यादा, महिलाओं में 50 mg/dL से ज़्यादा
  • LDL कोलेस्ट्रॉल : सामान्य लोगों का 100 mg/dL से कम और डायबिटीज़ या दिल की बीमारी से प्रभावित लोगों का 70 mg/dL से कम
  • ट्राईग्लिसराइड 150 mg/dL से कम

किन्हें है हाइपरलिपिडिमिया का ख़तरा?

ये रहे हाइपरलिपिडिमिया होने की कुछ वजहें:

उम्र: उम्र बढ़ने के साथ ख़ून में बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को साफ़ करने में शरीर को मुश्किल होने लगती है.

लिंग: महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों का HDL लेवल कम रहता है. अमूमन 55 वर्ष के उम्र तक की महिलाओं का LDL लेवल कम रहता है.

परिवार में पहले किसी को शिकायत रही हो: जिन लोगों के पिता या ग्रैंडपेरेंट्स में हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकायत हुई हो उन्हें इसका ज़्यादा ख़तरा रहता है.

हाइपरलिपिडिमिया की मुख्य वजहें क्या हैं?

मोटापा: मोटे होने की वजह से आपका लीवर ज़्यादा मात्रा में LDL कोलेस्ट्रॉल बनाता है. इसके अलावा, मोटापे के चलते ख़ून से LDL कोलेस्ट्रॉल के निकलने की मात्रा भी कम हो जाती है.

ग़लत खानपान: रेड मीट, डेरी उत्पाद, बेकरी में बनी सैचुरेटेड और ट्रांस फ़ैट वाली चीज़ों को खाने से LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है और HDL कोलेस्ट्रॉल कम होता है. इसके अलावा बार-बार बिस्किट, मिठाई और कोला, डब्बा बंद फलों के जूस जैसी शुगर वाली चीज़ों को खाने-पीने से लीवर नुक़सानदायक फ़ैट को ब्लड स्ट्रीम में भेजने लगता है.

शराब: ज़्यादा मात्रा में शराब पीने से ख़ून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइड की मात्रा बढ़ जाती है. साथ ही, पीते वक़्त आप चखने के तौर पर मूंगफली, बार नट, चिप्स, फ्राईज़ जैसी चीज़ों खाने से ख़ुद को रोक नहीं पाते. इस तरह ज़्यादा फ़ैट वाली चीज़ों को खाने की इच्छा आपके कोलेस्ट्रॉल की परेशानी को दोगुना कर देती है.

हाइपोथायरॉयडिज़्म: आपके शरीर को बिना ज़रूरत वाले कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने के लिए थाइरॉइड हॉर्मोन की ज़रूरत होती है. हाइपोथायरॉयडिज़्म के होने पर आपका शरीर उतनी कुशलता से LDL कोलेस्ट्रॉल के टुकड़े करके बाहर नहीं निकाल पाता, नतीजन आपके धमनियों में LDL कोलेस्ट्रॉल इकट्ठा होने लगता है.

डायबिटीज़: टाइप 2 डायबिटीज़ के लोगों को इंसुलिन रेजिस्टेंस की शिकायत होती है, इससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल बनने और निकालने के काम पर असर पड़ता है. इसके अलावा, डायबिटिक लोगों में LDL और ट्राईग्लिसराइड की मात्रा ज़्यादा और HDL की कमी के आसार होते हैं.

इनके अलावा डिसलिपिडिमिया होने की कुछ और वजहें भी हैं:

  • धूम्रपान
  • तनाव
  • एक्सरसाइज़ की कमी
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
  • किडनी की बीमारी
  • बीटा-ब्लॉकर्स, ड्यूरेटिक्स, गर्भ निरोधक गोलियां और एंटीडिप्रेशंट्स  

डिसलिपिडिमिया के लक्षण क्या हैं?

इसके लक्षण नज़र न आने की वजह से डिसलिपिडिमिया के शिकार हुए ज़्यादातर लोगों को इसके होने की जानकारी ही नहीं होती, इस लिपिड प्रोफ़ाइल की जांच के ज़रिए ही इस बीमारी को जाना जा सकता है.

लंबे समय में डिसलिपिडिमिया के क्या प्रभाव हो सकते हैं ?

लंबे समय में कोलेस्ट्रॉल की बढ़ी हुई मात्रा आपकी धमनियों और शरीर के दूसरे हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकती है.

ये रहीं डिसलिपिडिमिया के चलते होने वाली गंभीर बीमारियां

  • दिल का दौरा
  • हाइपरटेंशन
  • आर्टरी से संबंधित बीमारियां: धमनियों में ब्लॉकेज की वजह से पैरों में ख़ून का दौरा कम होता है.
  • ऐथिरोस्क्लेरोसिस: ज़्यादा प्लाक जमा हो जाने से धमनियां सिकुड़ जाती हैं.
  • कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (CAD): दिल की धमनी में ब्लॉक होना
  • अर्ट्रियोस्क्लेरोसिस: आर्टरी वाल का सख्त़ होना

डिसलिपिडिमिया का इलाज कैसे करें?

दवाइयां और लाइफ़स्टाइल में बदलाव ही डिसलिपिडिमिया के इलाज का सबसे सही सुझाव है.

ये रहीं डिसलिपिडिमिया दी जाने वाली सामान्य दवाएं:

  • स्टैटिन
  • ऐज़ेटिमिब
  • नियासिन
  • फ़ाइब्रेट्स
  • बाइल एसिड सिक्वेस्ट्रेंट्स
  • एवोलोकुमाब और अलिरोकुमाब
  • लोमिटापाइड और मिपोमेर्सेन
  • PCSK9 इन्हिबिटर्स

    इन दवाइयों के साथ, आपको अपने लाइफ़स्टाइल में कुछ इस तरह के बदलाव भी लाने होंगे.
  • वज़न घटाना: 5 से 10% बढ़ा हुआ वज़न कम करने से भी आपको काफ़ी फ़ायदा मिलता है
  • एक्सरसाइज़: साइकल चलाएं, वॉक करें या हफ़्ते में तीन बार 30 मिनट के लिए जिम जाएं
  • ज़्यादा शराब न पिएं: आपको हफ़्ते में 4 ड्रिंक्स से ज़्यादा शराब नहीं पीनी चाहिए
  • धुम्रपान न करें
  • शुगर घटाएं: बेकरी की चीज़ें, मीठा, तला हुआ खाना और जंक फ़ूड न खाएं
  • अलसी, अखरोट, चिया सीड्स और कद्दू के बीज जैसी ओमेगा-3 से भरपूर चीज़ें खाएं
  • बटर, घी, क्रीम, रेड मीट और दूध से बनी सैचुरेटेड फ़ैट वाली चीज़ों को खाना कम करें. इसके बदले आप नट्स, ऑइल सीड्स, लीन मीट जैसे कि मछली और लो फ़ैट  या स्किम्ड मिल्क जैसी चीज़ें खाएं
  • रोज़ाना कम से कम 5 बार फल और सब्ज़ियां खाएं

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