आपने हाल ही में यह ख़बर अख़बारों और बाद में वेबसाइट्स पर पढ़ी होगी, जो ये बताती है कि बिना किसी तरह के प्रिज़रवेटिव का इस्तेमाल किये गये फलों का जूस पीने से ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ता और ना ही इससे ग्लाइसेमिक इंडेक्स प्रभावित होता है. असल में जर्नल ऑफ़ न्यूट्रीशनल साइंस में छपे एक अध्ययन के मुताबिक़ ताज़ा फलो का जूस या 100% फलों का रस पीने से ब्लड शुगर लेवल और ग्लाइसेमिक इंडेक्स प्रभावित नहीं होता.
क्या ये बात सच्चाई से परे नहीं लगती? और शायद ये है भी. दरसल, ऐसी रिपोर्ट्स पर आँख बंद कर के विश्वास नहीं किया जा सकता. जब हेडलाइन सनसनीख़ेज़ होती है, तभी यह मीडिया द्वारा ली जाती है. पर आपको एक जागरूक दर्शक के तौर पर इस बात का पता करना आना चाहिए कि सही तथ्यों को सनसनीख़ेज़ जानकारी से कैसे अलग किया जाए.
इस अध्ययन से जुड़ी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के समस्या वाले क्षेत्र ये रहे
1. वास्तविक अध्ययन का कोई लिंक उपलब्ध नहीं:
किसी जर्नल में छपे स्ट्डी के नतीजों पर जब एक रिपोर्ट बनाई जाती है, फिर चाहे वो एक्सपेरिमेंट यानी प्रयोग हो, सर्वे या क्लिनिकल ट्रायल हो, हमेशा उल्लेख किए गए अध्ययन के स्रोत की तलाश करें. यह मुख्य आर्टिकल से लिंक किया गया हो (कुछ हिस्सों में या पूरा का पूरा) आर्टिकल में अगर सोर्स नहीं बताया जाता, तब आपके पास “तथ्यों” की सच्चाई को जांचने का कोई ज़रिया नहीं रह जाता. इसलिए सावधान रहें, और इस तरह के “सच” या “स्टडी” पर सोच समझकर यक़ीन करें.
इसे भी देखें: ब्लड शुगर बढ़ने पर क्या करें?
2.अक्सर जानकारी पूरी नहीं होती:
तो चलिए एक पल को मान लिया कि डायबिटीज़ में 100% फ़्रूट जूस या बिना किसी तरह के मिलावट वाला जूस पीना नुक़सानदायक नहीं है. पर इस फ़्रूट जूस की कितनी मात्रा लेनी चाहिए? दिन में एक ग्लास? 2 ग्लास? सप्ताह में 6 ग्लास? ग्लास का माप कितना हो? 100 एमएल? 120 एमएल? 150 एमएल? आप देख सकते हैं कि अक्सर ऐसी महत्वपूर्ण और बारीक, जानकारियां न होने के चलते “100% फ़्रूट जूस” के उपभोग करने की वास्तविकता कैसे बदल सकती है?
3. छुपे तौर पर “शर्तें लागू” :
कुछ आर्टिकल्स में मोटे तौर पर सिर्फ़ एक-आद लाइन में कहा गया होता है कि “जूस की मात्रा एक फल के बराबर हो”. अब इसके कहने का ये मतलब हुआ कि 100% जूस पीना ठीक है, पर तब, जब आप जूस के साथ कोई और फल ना खाएं. लेकिन अगर आप जूस और फल दोनों साथ खाते हैं, तो आपके ब्लड शुगर लेवल पर इससे फ़र्क पड़ना तय है. इसलिए आपको आर्टिकल्स में लिखे गए सभी तथ्यों को पढ़ने और छुपी हुई बातों को भी समझने की ज़रूरत है.
अगली बार जब भी आप इस तरह के आर्टिकल्स पढ़ें, तो सच जानने के लिए इन 3 बातों पर ज़रूर ध्यान दें. जिसके बाद नतीजे आपको हैरान कर सकते हैं.
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